
मुसलमान कुर्बानी क्यों करते हैं ?
मुसलमान बकरीद में कुर्बानी क्यों करते हैं। एक और बकरीद इस्लाम धर्म के सबसे प्रमुख त्योहार है। और इससे दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है यहां ईद में यह लोग 1 महीने का रोजा रखने के बाद ईद की खुशी मनाते हैं। वहीं ईद के 2 महीने 10 दिन बाद बकरीद आता है। इस मौके पर कुर्बानी दी जाती है। दोस्तों क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि इस मौके पर कुर्बानी क्यों दी जाती है। और इसके पीछे की कहानी क्या है। चलिए आज हम आपको यह बताते हैं कि आखिर बकरीद में कुर्बानी क्यों दी जाती है। और इसके पीछे की कहानी क्या है।
दोस्तों हर धर्म के त्योहार के पीछे कोई ना कोई कहानी जरूर होती है। और इसके मनाने की कोई ना कोई वजह भी होती है ऐसा ही बकरीद के साथ भी है इस्लाम में बकरीद मनाने की परंपरा और इस मौके पर कुर्बानी देने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है इस परंपरा की शुरुआत होने के पीछे कहानी है। अल्लाह ने अपने एक नवी और एक पैगंबर से एक इम्तिहान लिया था। जिसमें वह कामयाब हुए और इसके बाद बकरीद पर कुर्बानी देने का हुक्म अल्लाह की तरफ से हो गया। चलिए अब आपको पूरी कहानी बताते हैं।
इब्राहिम अलीसलाम अल्लाह के नबी और पैगंबर थे। एक रात जब इब्राहिम अलीसलाम रात में सो रहे थे तो उन्होंने एक ख्वाब देखा। इसमें अल्लाह ने इब्राहिम से कहा कि इब्राहिम तुम्हारे नजदीक जो सबसे पसंदीदा और सबसे प्रिय है तुम उसे मेरी राह में कुर्बान कर दो। चूकी नबी और पैगंबरों का ख्वाब कभी झूठा नहीं होता था। और जो कुछ भी देखते सुनते थे वह अल्लाह का हुक्म होता था। इसलिए इब्राहिम उस ख्वाब के जरिए मिले हुए हुक्म को पूरा करने में लग गए। इब्राहिम के पास ऊंटो एक बड़ा जखीरा था। उनमें से उन्होंने 100 ऊंट अल्लाह के नाम कुर्बान कर दिए। उन्होंने सोचा अल्लाह ने जिस बात का ख्वाब दिया था वह पूरा हो गया। लेकिन जैसे ही अगली रात को सोए फिर से वही सपना उनके पास आया। जिसमें अल्लाह कह रहे थे के इब्राहिम तुम्हारे पास जो सबसे प्रिय है, तुम जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते हो उसे मेरी राह में कुर्बान कर दो। फिर से वही ख्वाब देखने पर इब्राहिम ने सोचा शायद 100 उंटो की कुर्बानी कबूल नहीं हुई है। इसके लिए उन्होंने अगले दिन 200 ऊंटो की कुर्बानी दे दी। लेकिन दोस्तो ऊंटों की कुर्बानी के बाद इब्राहिम फिर से सोने गए। तो रात में उन्होंने वही ख्वाब देखा। जिसमें अल्लाह ताला उन्हें अपने सबसे पसंदीदा चीज कुर्बान करने के लिए कह रहे थे। अब इब्राहिम सोच में पड़ गए। कि अल्लाह किस चीज की कुर्बानी उनसे चाहते हैं। फिर उन्होंने सोचा कि इस दुनिया में सबसे प्रिय मेरा बेटा स्माइल है।
आपको बता दें इब्राहिम को बेटे का सुख बुढ़ापे में अल्लाह की वजह से हुआ था। वही बेटा उनके लिए सबसे प्रिय था और जान से बढ़कर था। अब इब्राहिम समझ गए थे की अल्लाह ताला उनके बेटे की कुर्बानी के लिए कह रहे थे। इब्राहिम को ये बात समझ में आ गई कि दरअसल अल्लाह ताला ये देखना चाहते हैं कि इब्राहिम अपने बेटे से ज्यादा प्यार करता है या अल्लाह ताला से। क्योंकि अब इब्राहिम के सामने सब कुछ साफ हो चुका था। इसलिए वो सुबह में उठे और अपनी बीबी से कहा कि स्माइल बेटे को अच्छे से नहला ।दो। और उसे नए कपड़े भी पहना देना। बिलकुल उसे किसी दूल्हे की तरह सजा दो। मैं उसे अपने दोस्त के यहां ले जा रहा हूं। उस समय स्माइल की उम्र 13 साल की थी। इब्राहिम के आदेश के अनुसार उनकी पत्नी ने बेटे इस्माइल को अच्छी तरह से नहला कर तैयार कर दिया, नए कपड़े पहना दिए और खुशबू भी लगा दिया। और फिर इस्माइल को अपने साथ लेकर के इब्राहिम पहाड़ की ओर चल दिए। इब्राहिम ये तय कर चुके थे कि वो अपने बेटे की कुर्बानी अल्लाह के लिए देंगे। लेकिन इधर शैतान भी अपने काम पर लग गया। शैतान सीधे इब्राहिम की पत्नी के पास गया। और उन्होंने कहा की इब्राहिम ने कहा है कि वो तुम्हारे बेटे स्माइल को लेकर दोस्त के घर जा रहा है। लेकिन असल में वो तुम्हारे बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बानी देने जा रहा है। क्योंकि अल्लाह ने उसे ऐसा करने के लिए हुक्म दिया है इस पर इब्राहिम की पत्नी ने कहा कि जब अल्लाह ने ऐसा करने के लिए हुक्म दिया है तो बहुत ही खुशी की बात है।
तुम एक स्माइल की बात कर रहे हो अगर मेरे हजार स्माइल भी होते तो अल्लाह के हुक्म से हम उन्हें भी कुर्बान कर देते। जब शैतान यहां इब्राहिम की पत्नी को भड़काने में नाकाम हो गया। तो वह सीधे इस्माइल के पास गया और कहने लगा तुम्हारे बाबा तुम्हें कुर्बानी के लिए ले जा रहे हैं। क्योंकि अल्लाह ने इस का हुक्म दिया है इसके अलावा शैतान इस्माइल को हर तरीके से भड़काने की कोशिश करता है लेकिन इस्माइल ने एकदम साफ कह दिया कि अगर अल्लाह का हुक्म है तो यह खुशी की बात है। यहां पर भी जब वह नाकाम हो गया तो वह इब्राहिम अली सलाम को भड़काने लगा। तुम आखिर अपने बेटे की कुर्बानी कैसे दे सकते हो। क्योंकि यह बेटा तुम्हें बुढ़ापे में मिला है और इसके अलावा तुम्हारी देखरेख करने के लिए कोई नहीं है बुढ़ापे में तुम्हारी खितमत के लिए कोई नहीं होगा। तो तुम बेटे की कुर्बानी मत दो। शैतान अलग-अलग तरीकों से इब्राहिम को कुर्बानी ना देने के लिए मनाने की कोशिश करता है लेकिन गुस्से में आकर इब्राहीम पड़े पत्थरों को उठाकर उस शैतान को मारने लगते हैं जिससे शैतान भाग जाता है।
आपने सुना होगा कि जब लोग हज करने जाते हैं तो वहां शैतान को पत्थर मारने की परंपरा है। दरअसल शैतान को पत्थर मारने का हुक्म इसी घटना की वजह से अल्लाह ने दिया था। क्योंकि इब्राहिम ने जब शैतान को पत्थर मारा तो अल्लाह को यह बात पसंद आई थी। जब शैतान वहां से चला गया तो इस्माइल ने अपने बेटे से सारी बात कही। और कहा कि बाबा मुझे कोई शिकायत नहीं है बस मेरे हाथ पैर बांध दें। साथ ही आप अपनी आंखों पर पट्टी भी बांध ले क्योंकि जब आप मेरी गर्दन पर छुरी चलाएंगे तो शायद आप मेरा दर्द देख नहीं सकेंगे। अगर आप बीच में रुक गए तो यह अल्लाह की नाफरमानी होगी। इस पर इब्राहिम ने अपने बेटे के हाथ-पैर बांध दिए और अपनी आंखों पर पट्टी भी बांध ली और उन्हें सुला दिया जैसे ही स्माइल को सुलाया गया उन्होंने कहा बाबा रुक जाओ मेरे हाथ पैर खोल दो इस पर इब्राहिम ने कहा कि बेटा अभी तो तुम कह रहे थे कि मेरे हाथ पैर बांध दीजिए। इस पर स्माइल ने कहा कि कल कोई कहेगा कि शायद बेटे की मर्जी नहीं थी। इसलिए बाप ने हाथ पैर बांधकर जबरदस्ती कुर्बानी कर दिया। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप मेरे हाथ पैर खोल दे मैं बिल्कुल भी नहीं छटपटाऊंगा। आप मुझे सब्र करने वालों में से पाएंगे। इसके बाद इब्राहिम ने इस्माइल के बांधे हुए हाथ पैरों को खोल दिया। इसके बाद आंख पर पट्टी लगाकर इस्माइल की गर्दन पर छुरी चलाने लगे। लेकिन पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी गर्दन थोड़ी सी भी नहीं कटी। इस पर इब्राहिम ने सोचा कि छुरी चल क्यों नहीं रही है। तो उन्होंने इस छुरी को पत्थर पर मारा। छुरी की धार से पत्थर टुकड़ों में बट गया। लेकिन उसे छुरी से इस्माइल नाजुक गर्दन नहीं कट रही थी। उन्होंने दूसरी बार कोशिश की लेकिन इस बार गर्दन कट गई लेकिन जब उन्होंने आंखें खोली तो वहां पर एक जानवर की लाश पड़ी हुई थी। और उनका बेटा इस्माइल बगल में खड़े होकर मुस्कुरा रहा था।
दरअसल जब इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी करने की कोशिश कर रहे थे तो अल्लाह ने तुरंत जिब्राइल को बुलाया और कहां की इब्राहिम इस इम्तिहान में कामयाब हो गया है। और कहां की तुम जन्नत से जल्दी से एक जानवर लेकर जाओ और उसे इस्माइल की जगह पर रख दो। इस्माइल को सही सलामत वहां से हटा दो। इस्माइल की जगह कुर्बान होने वाला जानवर दुंबा था। दुंबा एक भीड़ की शक्ल का जानवर होता है। इसके बाद तुरंत इब्राहिम को एक आवाज आई और उसने कहा कि अब्राहिम तुमने यह साबित कर दिया है कि तुम मुझसे भी बहुत ज्यादा मोहब्बत करते हो। और तुम इस इम्तिहान में कामयाब हो गए। हमने तुम्हारी कुर्बानी कुबूल कर ली है। इसके बाद ही अल्लाह ने इब्राहिम की भावनाओं को जिंदा रखने के लिए लोगों को कुर्बानी करने का हुक्म दिया। और तभी से लोग हर साल कुर्बानी करते हैं।